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इंसानियत है अब कहाँ? हम तो असीमित थे, हमें बांधा है इन जालो ने लुटेरे के घोटालों ने, राजदार गद्दीवालों ने हम तो विस्तृत थे, हमें रोका है इनके जंजालो ने ...